नई दिल्ली । सुप्रीम कोर्ट ने ड्रग्स एंड कॉस्मेटिक्स रूल्स, 1945 के नियम 170 हटाने के केंद्र के फैसले पर रोक लगा दी है। कोर्ट ने इससे जुड़ा आयुष मंत्रालय का नोटिफिकेशन भी रद्द कर दिया है। नियम 170 आयुर्वेदिक, सिद्ध या यूनानी दवाओं के भ्रामक विज्ञापनों पर रोक लगाता है। जस्टिस हिमा कोहली और जस्टिस संदीप मेहता की बेंच ने केंद्र को फटकार लगाई। कहा कि मंत्रालय का नोटिफिकेशन उसके 7 मई, 2024 के आदेश के खिलाफ है। सरकार कोर्ट के आदेश के बावजूद नियम 170 हटाने का फैसला कैसे कर सकते हैं?
दरअसल, केंद्र ने 29 अगस्त, 2023 को एक लेटर जारी किया था। इसमें राज्यों और केंद्र शासित प्रदेशों को नियम 170 के तहत कंपनियों पर कोई कार्रवाई शुरू या नहीं करने को कहा गया था। नियम 170 को 2018 में ड्रग्स एंड कॉस्मेटिक्स रूल्स,1945 में जोड़ा गया था। इसमें कहा गया कि आयुर्वेदिक, सिद्ध और यूनानी दवाएं, जिस राज्य या केंद्र शासित प्रदेश में बन रही है, वहां की लाइसेंसिंग अथॉरिटी के अप्रूवल के बिना विज्ञापन नहीं दिया जा सकेगा।
विज्ञापनों की जांच के लिए नियम 170 लगाई गई
जस्टिस कोहली ने कहा कि नियम 170 हटाने का क्या मतलब है। प्रकाशन से पहले विज्ञापनों पर प्रतिबंध या जांच लगाने के लिए नियम 170 लगाई गई थी। इसकी वापसी का मतलब है कि विज्ञापनों की जांच उसके छपने या प्रसारित होने के बाद ही की जा सकती है। सुप्रीम कोर्ट ने मामले पर केंद्र से जवाब भी मांगा है। कोर्ट ने कहा कि सरकार से स्पष्टीकरण मिलने तक नियम 170 को हटाने वाली 1 जुलाई, 2024 की अधिसूचना स्थगित रहेगी। यानी कंपनियों के लिए यह कानून लागू रहेगी।
पतंजलि भ्रामक विज्ञापन केस की सुनवाई के दौरान मुद्दा उठा
सुप्रीम कोर्ट में 7 मई को पतंजलि के भ्रामक विज्ञापन केस की सुनवाई के दौरान नियम 170 का मुद्दा उठा था। दरअसल, पतंजलि पर कोविड वैक्सीनेशन, एलोपैथी के खिलाफ निगेटिव प्रचार और खुद की आयुर्वेदिक दवाओं से कुछ बीमारियों के इलाज का झूठा दावा करने का आरोप है। इंडियन मेडिकल एसोसिएशन की ओर से 17 अगस्त 2022 को सुप्रीम कोर्ट में याचिका दायर की गई थी। 7 मई, 2024 को सुनवाई के दौरान सुप्रीम कोर्ट ने आयुष मंत्रालय के लेटर पर केंद्र से सवाल किया था। कोर्ट ने पूछा कि आपने नियम 170 के तहत कोई कार्रवाई नहीं करने के लिए क्यों कहा है? सुप्रीम कोर्ट की फटकार के बाद केंद्र ने आयुष मंत्रालय 1 जुलाई, 2024 को लेटर वापस ले लिया था। हालांकि, केंद्र ने लेटर वापस लेने के बाद एक नोटिफिकेशन जारी किया और इस नियम को पूरी तरह से हटा दिया था।