राष्ट्रपति द्रौपदी मुर्मू ने जोधपुर के शीन काफ़ निज़ाम को पद्मश्री से सम्मानित किया
जोधपुर के एस.के. बिस्सा जिन्हें दुनिया मशहूर अंतरराष्ट्रीय ख्यात मकबूल शायर, चिंतक और आलोचक ‘शीन काफ निजाम’ के नाम से जानती हैं, उन्हें सोमवार को नई दिल्ली में राष्ट्रपति द्रौपदी मुर्मू ने पद्मश्री से सम्मानित किया। भीतरी शहर के पुष्करणा ब्राह्मण परिवार में जन्मे बिस्सा की की उर्दू भाषा में इतनी रुचि हुई कि उन्होंने उर्दू में लिखना शुरू कर दिया। महज 17 साल की उम्र में उन्होंने अपना नाम शिवकिशन बिस्सा यानी एस.के. को उर्दू में शीन काफ और तखल्लुस निजाम रख लिया था।
देश के कई प्रसिद्ध अवार्ड से भी हो चुके सम्मानित
शीन काफ निजाम को पद्मश्री से सम्मानित किए जाने से पहले भी उन्हें देश-विदेश में कई प्रतिष्ठित अवार्ड से सम्मानित किया जा चुका है। इनमें वर्ष 1999-2000 में राजस्थान उर्दू अकादमी, जयपुर के सर्वोच्च सम्मान ‘महमूद शीरानी अवार्ड’, वर्ष 2003 में मेहरानगढ़ म्यूजियम ट्रस्ट की ओर से 'मारवाड़ रत्न' एवं 'राजा मान सिंह सम्मान’, वर्ष 2006 में बेगम अख्तर गजल अवार्ड, वर्ष 2006-2007 में 'इकबाल सम्मान', वर्ष 2010 में साहित्य अकादमी अवार्ड, वर्ष 2016 में आचार्य विद्यानिवास मिश्र स्मृति सम्मान, वर्ष 2018 में संस्कृति सौरभ सम्मान, कोलकाता के अलावा केंद्रीय भाषा संस्थान, मैसूर की ओर से राष्ट्रीय भाषा भारती सम्मान और शाने-उर्दू अवार्ड से भी सम्मानित किया जा चुका है।
बिस्सा का जीवन परिचय और नाम-तखल्लुस से बन गई नई पहचान
जोधपुर शहर हो या दुनिया का कोई अन्य हिस्सा, बहुत ही कम लोग होंगे, जो शीन काफ निज़ाम को उनके असली नाम शिव किशन बिस्सा के नाम से जानते हों। वे अपने नाम को लेकर बताते हैं कि दरअसल, वे खुद का नाम एस. के. बिस्सा लिखते थे और इसी नाम को उर्दू में लिखने पर एस = शीन, काफ़ = के होता है। इसके साथ निज़ाम शब्द उनका तखल्लुस है, जिसे मिलाने पर बना ‘शीन काफ़ निज़ाम’।
दिलीप कुमार से लेकर गुलज़ार तक से अभिन्न रिश्ते
शीन काफ़ निजाम की लेखनी पर पकड़ ऐसी थी, कि इन्होंने देश ही नहीं, दुनिया के हर हिस्से में आयोजित मुशायरों में अपनी अलग ही छाप छोड़ी। इसी के चलते मशहूर गीतकार गुलजार सहित दुनिया के नामचीन साहित्यकारों से भी अभिन्न मित्रता है। इसी तरह के रिश्ते फिल्म अभिनेता दिलीप कुमार से भी थे।