मोहिनी एकादशी का दिन, अन्य सभी एकादशी की तरह, भगवान विष्णु को समर्पित है. भगवान विष्णु की मूर्तियों से विशेष मंडप तैयार किये जाते हैं. भक्त चंदन, तिल, रंग-बिरंगे फूलों और फलों से भगवान की पूजा करते हैं. भगवान विष्णु को प्रिय होने के कारण तुलसी के पत्ते चढ़ाना बहुत लाभकारी होता है. कुछ क्षेत्रों में मोहिनी एकादशी के दिन भगवान विष्णु के अवतार भगवान राम की भी पूजा की जाती है.
जो लोग स्वास्थ्य जटिलताओं के कारण सख्त उपवास नियमों का पालन नहीं कर सकते हैं, वे मोहिनी एकादशी पर आंशिक उपवास या व्रत रख सकते हैं. फल, सब्जियां और दूध उत्पाद जैसे 'फलाहार' खाने की अनुमति है. मोहिनी एकादशी के दिन चावल और सभी प्रकार के अनाज का सेवन उन लोगों के लिए भी वर्जित है, जो कोई व्रत नहीं रखते हैं.
एकादशी व्रत के दिन मांस या मदिरा का सेवन भूलकर भी नहीं करना चाहिए. ऐसा करने से भगवान क्रोधित जाते हैं और व्यक्ति के जीवन में कई परेशानियां उत्पन्न हो जाती हैं. जो लोग व्रत का पालन कर रहे हैं, उन्हें इस दिन अपना मन शांत रखना चाहिए. साथ ही क्रोध भूलकर भी नहीं करना चाहिए. मन में गलत विचार उत्पन्न ना हो, इसका भी विशेष ध्यान रखना चाहिए.
मोहिनी एकादशी व्रत का पालन करने वाले सूर्योदय से पहले उठकर तिल और कुश से स्नान करें. दशमी की रात को उसे फर्श पर सोना चाहिए. भक्त दिनभर अपने देवता की पूजा-अर्चना करते हैं और पूरी रात भजन गाते हुए और श्री कृष्ण की स्तुति में मंत्रों का जाप करते हुए जागते हैं.
इस दिन लोग पूरे दिन अन्न का एक भी दाना खाए बिना कठोर उपवास रखते हैं. उपवास, एक दिन पहले, 'दशमी' तिथि से शुरू होता है. इस दिन सूर्यास्त से पहले एक बार 'सात्विक' भोजन खाया जाता है. पूर्ण उपवास एकादशी को होता है और 'द्वादशी' के सूर्योदय तक जारी रहता है. ऐसा माना जाता है कि मोहिनी एकादशी का व्रत अगले दिन दूध पीकर खोलना चाहिए.