उत्तराखंड को देवभूमि के नाम से भी जाना जाता है, यहां के प्रसिद्ध मंदिरों में से एक है केदारनाथ धाम. जहां पर जानें की इच्छा हर एक भारतीय की होती है. उत्तराखंड को देवभूमि इसलिए कहा जाता है क्योंकि यहां देवी-देवताओं का वास माना गया है. यहां श्रद्धालु दूर-दराज से बाबा केदारनाथ के दर्शन करने पहुंचते हैं. केदारनाथ मंदिर भारत के उत्तराखण्ड राज्य के रुद्रप्रयाग जिले में है. केदारनाथ धाम उत्तराखंड का सबसे विशाल मंदिर है. अगर आप भी भोले बाबा के भक्त हैं तो आपका सपना भी केदारनाथ मंदिर जीवन में एक बार जाने का तो जरूर होगा. आज सुबह 7 बजे बाबा केदारनाथ धाम के कपाट सभी भक्तों के लिए खोल दिए गए हैं. आइए जानते हैं भोपाल निवासी ज्योतिषी एवं वास्तु सलाहकार पंडित हितेंद्र कुमार शर्मा से इस बारे में विस्तार से.

जानते हैं कब हुआ मंदिर का निर्माण?
केदारनाथ मंदिर के निर्माण के बारे में कई तरह की बातें सामने आती हैं, जिसमें पांडवों से लेकर आदि शंकराचार्य का भी जिक्र मिलता है. साथ ही ये भी प्रचलित है कि मंदिर का जीर्णोद्धार जगद्गुरु आदि शंकराचार्य ने करवाया था. मान्यता है कि केदारनाथ धाम में शिवलिंग स्वयं प्रकट हुआ है. केदारनाथ मंदिर का निर्माण पांडव राजा जनमेजय ने करवाया था. इसके बाद 8वीं शताब्दी में आदिगुरु शंकराचार्य ने इस मंदिर का जीर्णोद्धार करवाया.

केदारनाथ धाम की कथाएं
केदरनाथ धाम से जुड़ी कई मान्यताएं प्रचलित हैं. जिसमें से एक मान्यता यह है कि केदार श्रृंग पर तपस्वी नर-नारायण पार्थिव शिवलिंग बनाकर भगवान शिव की नियमित पूजा करते थे. नर-नारायण की सच्ची भक्ति और उनकी तपस्या से भगवान भोलेनाथ प्रसन्न होकर प्रकट हुए. भगवान शिव ने उन्हें वरदान मांगने के लिए कहा. तब नर-नारायण ने वरदान के रूप में भगवान शिव को हमेशा यहीं रहने का वरदान मांगा. यानी वे ज्योतिर्लिंग के रूप में हमेशा यहां वास करें और भोलेबाबा के भक्तों को उनके दर्शन हो सकें. जिसके बाद भगवान शिव ने ये वरदान नर-नारायण को प्रदान किया और वे हमेशा के लिए वहीं बस गए. भगवान शिव का मंदिर केदारनाथ आज पूरी दुनिया में केदारनाथ धाम के रूप में प्रचलित है और भक्त बाबा के दर्शन के लिए दूर-दूर से पहुंचते हैं.

पांडवों से जुड़ी है मान्यता
महाभारत युद्ध के बाद पांडवों पर अपने भाइयों की हत्या का दोष लगा. ऐसे में श्री हरि भगवान विष्णु ने उन्हें भोलेनाथ से माफी मांगने के लिए कहा, लेकिन भगवान शिव पांडवों को क्षमा नहीं करना चाहते थे. ऐसे में भगवान शिव पांडवों के सामने नहीं आना चाहते थे. उनकी नजरों में न आने के कारण भगवान शिव ने नंदी का रूप धारण किया और वे पहाड़ों में अन्य मवेशियों के साथ रहने लगे.