नई दिल्ली। बीजेपी ने दिल्ली चुनाव में ऐतिहासिक जीत दर्ज कर राजनीतिक ताकत दिखा दी है। अब पार्टी इसी ताकत का अनुभव पश्चिम बंगाल में आगामी विधानसभा चुनावों में दिखाने की रणनीति बना रही है। दिल्ली और पश्चिम बंगाल की राजनीतिक स्थिति की तुलना करने से कुछ महत्वपूर्ण रणनीतिक पहलुओं का पता चलता है।
दिल्ली में बीजेपी ने केवल सक्षम उम्मीदवार ही नहीं उतारे, बल्कि एक सशक्त चुनावी टीम भी तैयार की। पार्टी ने चुनाव प्रबंधन में वरिष्ठ नेताओं की भागीदारी तय की और जमीनी स्तर पर कार्यकर्ताओं को सक्रिय किया। अरविंद केजरीवाल सरकार के खिलाफ जनता की नाराजगी को बीजेपी ने भुनाने का प्रयास किया। पार्टी ने दिल्ली सरकार पर भ्रष्टाचार के आरोप लगाकर मतदाताओं को अपनी ओर खींचने का प्रयास किया। आम आदमी पार्टी के नेताओं के बढ़ते बयानों को बीजेपी ने उनके खिलाफ भुनाया और जनता के मूड को भांपने में सफल रही।
बीजेपी अब दिल्ली की तरह ही पश्चिम बंगाल में भी ममता सरकार के खिलाफ नाराजगी को मुख्य मुद्दा बना सकती है। टीएमसी सरकार पर भ्रष्टाचार के आरोपों को जनता तक पहुंचाने की कोशिश की जाएगी। पार्टी पश्चिम बंगाल में भी मजबूत संगठनात्मक ढांचा तैयार कर सकती है। क्षेत्रीय नेताओं की भागीदारी बढ़ाकर जमीनी स्तर पर प्रभावशाली उम्मीदवारों को उतारने की योजना बना सकती है। बीजेपी ओडिशा चुनाव की तरह किसी विशेष मुद्दे को उभारकर जनता को आकर्षित करने की रणनीति पर काम कर सकती है।
दिल्ली में मिली सफलता को देखते हुए बीजेपी पश्चिम बंगाल में भी अपनी रणनीति को उसी तर्ज पर लागू करने की योजना बना रही है। पश्चिम बंगाल की राजनीतिक परिस्थितियां दिल्ली से अलग हैं, इसलिए बीजेपी को वहां की स्थानीय परिस्थितियों और मतदाताओं की प्राथमिकताओं के अनुरूप रणनीति को ढालना होगा। यदि पार्टी एंटी-इनकंबेंसी और भ्रष्टाचार के मुद्दों को जनता तक पहुंचने में सफल होती है, तो आगामी विधानसभा चुनाव में उसे लाभ मिल सकता है।